दृष्टांत कथाएं । Drishtant Katha in hindi

Drishtant Katha in hindi

दृष्टांत कथा- ये दरवाजा भी बंद हो जाए तो

 
संत फरीद के पास एक धनी व्यक्ति आया और अपना आलीशान महल दिखाने की जिद करने लगा । संत फरीद उसके आग्रह को टाल न सके । संत फरीद ने महल देखा और अकस्मात हंसने लगे । उस धनी व्यक्ति से रहा नहीं गया । उसने तुरंत संत फरीद को समझाते हुए कहा, ‘शायद आपको पता नहीं हैं, सुरक्षा की दृष्टि से यह महल अद्वितीय है । मैंने सारे दरवाजे बंद करके सिर्फ एक ही दरवाजा महल में रहने दिया है, ताकि कोई दुश्मन महल में फटक भी न ।’

इस बात को सुनते ही संत फरीद ने कहा- ‘यही तुझ से भूल हो गई । यह एकमात्र दरवाजा भी बंद कर दे । फिर तू बिलकुल सुरक्षित हो जाएगा । कोई भी अंदर आ न सकेगा ।’ इस पर उस धनी व्यक्ति ने कहा, ‘यह आप क्या कह रहे हैं ।’ इस तरह तो यह महल कब्र में तब्दील हो जाएगा और मैं मर जाऊंगा ।’

इस पर संत फरीद के उद्गार थे, ‘मूर्ख जब तू समझता है कि एक द्वार बंद कर लेने से तेरी मृत्यु हो जाएगी, तो जिस तरह से तूने सारे दरवाजे बंद किए हैं, उसी अनुपात में जीवन से संबंध टूटने से तेरी मृत्यु हो चुकी है । इसलिए कह रहा हूं, यह एक दरवाजा भी बंद हो जाए तो कब्र पूर्ण हो जाए । क्योंकि खुले सूरज व खुले आकाश का आनंद लेना तेरे नसीब में नहीं है ।’ संत फरीद के वचन सुनकर धनी व्यक्ति की आंखें डबडबा गई और वह उनके चरणों में गिर गया ।

दृष्टांत कथा- लिबास की कीमत

 

एक बार शेख सादी किसी सराय में ठहरे हुए थे । उस सराय का मालिक शेख साहब को भली भांति जानता था । उसने उनका बड़ा आदर सत्कार किया । जब उस शहर के धनी व्यक्तियों को इस बात का ज्ञान हुआ, तो वे दौड़े दौड़े आए तथा रात के खाने का निमंत्रण दिया । शेख सादी ने इसे स्वीकार कर लिया । बातों बातों में लिबास का जिक्र आया । शेख सादी ने फरमाया, ‘लिबास को खुदा ने वह सम्मान दिया है कि उसके बिना किसी भी व्यक्ति का सम्मान नहीं ।’

इस पर एक व्यक्ति ने एतराज किया । हुजूर लिबास तो हम जैसे व्यक्तियों के लिए है जिनके पास कोई गुण नहीं । आप जैसे गुणवान व्यक्ति के लिए लिबास की क्या जरूरत? शेख ने कहा, ‘नहीं तुम्हारा विचार गलत है । बड़े से बड़ा व्यक्ति भी बिना अच्छे लिबास के सम्मान नहीं पा सकता । मेरी तो बात ही क्या?’ पर वह व्यक्ति अपनी ही बात पर अड़ा रहा । अंत में शेख सादी ने कहा कि तुम्हारी इस बात का उत्तर हम शाम को देंगे ।

शाम होते ही शेख सादी भिखारी का रूप धारण कर, उस स्थान पर पहुंचे, जहां दावत हो रही थी । वहां कुछ व्यक्ति खाना बनाने में व्यस्त थे, कुछ दूसरे कामों में लगे थे । उन्हीं में वह व्यक्ति भी था, जिसने शेख सादी की बात मानने से इंकार कर दिया था । शेख सादी ने उस व्यक्ति के पास जाकर, हाथ जोड़कर कहा, ‘हुजूर ! मुझ गरीब को भी इस दावत में शामिल कर लीजिए । मैं दो दिन से भूखा हूं ।’ उस व्यक्ति ने ऊपर से नीचे तक शेख सादी को घूर कर देखा तथा धक्के देकर बाहर निकलवा दिया ।

इसके तुरंत बाद शेख सादी  अपनी सराय पहुंचे । सुंदर और कीमती वस्त्र पहन दोबारा दावत में पहुंचे । लोगों ने उनका दूर से ही आदर सत्कार किया । उन्हें ले जाकर कीमती कालीन पर बिठाया । उसके बाद उनके सामने विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोजन परोसे गए । शेख सादी ने एक नजर उन व्यक्तियों की ओर देखा तथा सिर से टोपी उतारकर चावलों की प्लेट पर रख दी और ऊंचे स्वर में बोले, ‘ले खा ले !’ इसी प्रकार अपनी कमीज की आस्तीन को सालन में डुबोकर बोले  ‘ले खा ले !’ वहां पर उपस्थित लोगों ने उनकी इस हरकत को हैरत से देखा और बोले, ‘हजरत ! यह आप क्या कर रहे हैं । खाना खाइए ठंडा हुआ जाता है ।’

शेख सादी ने कहा, ‘जिस की दावत थी वह तो अपने हिस्से की धक्के खा कर चला गया । अब तो इन कपड़ो को खाना खिला रहा हूं ।’ शेख साहब की यह पहली किसी की समझ में नहीं आई । जब उन्होंने पूरा वाक्या सुनाया तो सभी लोग हंस पड़े और वह व्यक्ति अपनी इस हरकत पर लज्जित हो उठा ।

Related posts

Leave a Comment